२००६ में मुझे एक व्यापार प्रबंधन संस्थान में दाखिला लेने के लिए मनिपाल जाने का अवसर प्राप्त हुआ। वैसे तो मैं उस संस्थान में प्रवेश नही पा सका, पर उस दौर की कुछ यादें हैं जो हमेशा मुझे खुश कर देती हैं।
ऐसी ही एक याद है उदिपी के कृष्ण मन्दिर की।उदिपी मनिपाल का स्टेशन है। बात २४ जून २००६ की है, बहुत ही ज़ोरदार बारिश हो रही थी वहाँ।मैंने और मेरे दो साथियों ने सोचा कि अब तो मनिपाल से लौटना ही था तो क्यों ना वहाँ के किसी अच्छी चीज़ को देख लिया जाता जिसके बारे में अपने गृहनगर में बताया जा सकता। पूछने पा पता चला कि पास ही में कृष्ण मन्दिर है।
हमलोगों ने वहाँ जाने का निश्चय कर लिया। वहाँ जाने पर देखा संध्या आरती का समय हो रहा था। ये भी एक बहुत ही अच्छा इत्तेफाक था अन्यथा बहुत ही सुंदर नज़ारे से वंचित रह जाते हम सब।
वहाँ के मन्दिर कि खासियत है कि आप श्री कृष्ण को एक झरोखे से ही देख सकते हैं, उनको छू नही सकते, क्यूंकि दक्षिण भारत में ये मान्यता है कि छूने से प्रतिमा अपवित्र हो जायेगी। श्री कृष्ण का वो दैविक अलंकरण मैंने उससे पहले नहीं देखा था।बहुत ही खूबसूरत नज़ारा था, दैविक ही तो था।
दूसरी खासियत उस मन्दिर की: वहाँ की आरती में मन्दिर के चारों और लगे असंख्य द्वीप श्रेणी को प्रज्वलित किया गया, जो उस आरती को बहुत ही मनोरम बनता था। मन्दिर में चारों और द्वीपं की श्रेणी है दीवारों पर, और पीतल से बने रास्ते दिखाने वाले तत्वों पर, और द्वीप भी पीतल के बने है जो दृश्य को मनोरम बना देते हैं। इसके अलावा आरती की थाली जो आपका ध्यान निश्चय ही अपने और खींच लेती। बहुत ही मनोरम दृश्य था वहाँ की आरती का।
मौका मिले तो वहाँ की आरती में जरुर सम्मिलित होइएगा।
Friday, May 2, 2008
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